+91 00000-00000 Trust Registration:?

त्रिस्तुतिक श्रीसंघ के पुनरोद्धारक

श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वर जी म. सा.

काल गणना की मर्यादा से अधिक प्राचीन हैं यह मार्ग । अंतिम तीर्थंकर भगवान श्री महावीर प्रभु के निर्वाण के बाद आचार्यवर्यों ने इस संघ का नेतृत्व किया । यद्यपि नेता गीतार्थ, समर्थ और जागृत थे, तथापि ह्रास प्रधान काल, राजकीय वातावरण और अन्याय निमित्तों से त्यागियों मुमुक्षुओं के इस संघ पर शिथिलता हावी हो चली ।

दो सौ वर्ष पहले जैन श्वेताम्बर संघ मे आचार शिथिलता का साम्राज्य हो गया था । उस समय संघ का नेतृत्व यतियों के हाथ मे था, जो अपनी-अपनी चहनाओं की पूर्ति मे लगे थे। ऐसे समय में शिथिलता के गर्त से संघ को निकालकर श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वर जी म. सा. ने त्रिस्तुतिक जैन संघ की पुनर्स्थापना कर धर्म जीवन को पुनः गतिशील किया ।

पुनरोंद्धार के मार्ग से श्री गुरुदेव को हटाने के लिए की प्रयत्न किए गए । अनेक तेजोद्वेषियों ने स्तुति विचारणा के समय श्री गुरुदेव पर आरोप लगाए किन्तु इतिहास पट्टावलिओ और अन्य सामग्री के बल पर आरोप की सत्यता का परीक्षण करने पर यह आरोप सत्य नहीं ठहरता । कई आचार्यों एवं मुनि भगवंतों की प्राचीनकालीन रचनाओं मे त्रिस्तूति की प्राचीनता के कई प्रमाण मिलते हैं ।

प्रमुख घटनाएं

दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसुरीश्वर जी म. सा. की पाट परंपरा की निश्रा मे कई महोत्सव ऐसे आयोजित हुए, जिनसे न केवल धर्म का प्रचार हुआ बल्कि गुरुभक्तों की आस्था के भी केंद्र बने।

गुरुदेवश्री ने किया त्रिस्तुतिक श्रीसंघ का पुनरोंद्धार

स्थान: जावरा   | दिनांक : आसाढ़ व. 10, वि. स्. 1925

दो सौ वर्ष पहले जैन श्वेताम्बर संघ मे आचार शिथिलता का साम्राज्य हो गया था । उस समय संघ का नेतृत्व यतियों के हाथ मे था, जो अपनी-अपनी चहनाओं की पूर्ति मे लगे थे। ऐसे समय में शिथिलता के गर्त से संघ को निकालकर श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वर जी म. सा. ने जावरा मे क्रियोद्धार के द्वारा त्रिस्तुतिक जैन संघ की पुनर्स्थापना कर धर्म जीवन को पुनः गतिशील किया ।

गुरुदेवश्री ने की श्री मोहनखेड़ा तीर्थ की स्थापना

स्थान: श्री मोहनखेड़ा तीर्थ   | दिनांक : मार्गशीर्ष सू. 7, वि. स्. 1940

श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का विहार जब राजगढ़ के निकट छोटी अस्थायी बस्ती, खेडा, से हो रहा था तब सहसा उन्हें दिव्य अनुभुति हुई। राजगढ़ आकर सुश्रावक श्री लुणाजी पोरवाल से कहा कि आप सुबह उठकर खेड़ा जावें व घाटी पर जहाँ कुमकुम का स्वस्तिक देखें, वहाँ निशान बनाकर मंदिर का निमार्ण कराए।

गुरुभक्त लुणाजी ने गुरुदेव के कथनानुसार मंदिर का निर्माण कराया। गुरूदेवश्री ने मार्गशीर्ष सू. 7, वि. स्. 1940 के शुभ दिन मुलनायक श्री ऋषभदेव भगवान आदि के 41 जिनबिम्बों की अंजनशलाका-प्रतिष्ठा की तथा इस तीर्थ क्षेत्र को 'मोहनखेडा' के नाम से पुकाराने की घोषणा की।

आचार्य श्री यतीन्द्रसूरि जी म.सा. की निश्रा मे
प्रथम जीर्णोद्धार एवं अर्ध-शताब्दी महोत्सव

स्थान: श्री मोहनखेड़ा तीर्थ   | अर्ध-शताब्दी दिनांक : 12 अप्रैल - 15 अप्रैल 1957

संवत 1991 मे मंदिर निर्माण के लगभग 28 वर्ष पश्चात श्री यातीन्द्रसूरि म.सा. के उपदेश से प्रथम जीर्णोद्धार हुआ। यह जीर्णोद्धार उनके शिष्य मुनिप्रवर श्री अमृतविजयजी की देखरेख व मार्गदर्शन मे हुआ था।

बड़नगर मे आचार्य श्री की निश्रा मे अर्धशताब्दी महोत्सव की रूपरेखा निर्धारित हुई। यह उत्सव चेत्र शुक्ल 13-15 स्. 2013 (12 अप्रैल - 15 अप्रैल 1957) तक आयोजित हुआ। चेत्र शुक्ल पूर्णिमा को पूज्य गुरुदेव को विशाल जनमेदिनी ने श्रद्धांजलि अर्पित की तथा इसी दिन श्री राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ का लोकार्पण भी हुआ था।

आचार्य श्री विद्याचन्द्रसूरि जी म.सा. की निश्रा मे
द्वितीय जीर्णोद्धार सम्पन्न

स्थान: श्री मोहनखेड़ा तीर्थ   | दिनांक : 19 जून 1975-20 फरवरी 1978

23 मई 1975 को मूलनायकजी का उत्थापन के बाद ज्येष्ठ शुक्ल 11 स्. 2032 (19 जून 1975) को भव्य समारोह के साथ शिलान्यास किया गया और तीव्र गति से निर्माण कार्य प्रारंभ हो गया।

आचार्य श्री विद्याचन्द्रसूरि जी म.सा. ने अपने करकमलों से माघ शुक्ल 12 वि.स्. 2034 (20 फरवरी 1978) को 377 जिनबिंबों की अंजनशलाका की। अगले दिवस तीर्थाधिराज मूलनायक श्री ऋषभदेव जी आदि 51 जिनबिंबों की प्राण प्रतिष्ठा की व शिखरों पर दण्ड, ध्वज व कलश समारोपित किए गए।

दो राष्ट्रसंत आचार्यों की निश्रा मे
भव्य शताब्दी महोत्सव का आयोजन

स्थान: श्री मोहनखेड़ा तीर्थ   | दिनांक : 15 दिसम्बर 2006-31 दिसम्बर 2006

विश्वपूज्य प्रातःस्मरणीय आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसुरीश्वर जी म. सा. की 180वे जन्मतिथि एवं 100वीं पुण्यतिथि को उनकी पुण्य स्थली श्री मोहनखेड़ा तीर्थ की पवित्र स्थली पर स्वर्गारोहण शताब्दी महमहोत्सव के रूप मे मनाया गया।

15 दिसम्बर से 31 दिसम्बर 2006 तक आयोजित शताब्दी महामहोत्सव को राष्ट्रसंत शिरोमणि आचार्यदेव श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरिश्वर जी म. सा. एवं राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्रीमद्विजय जयंतसेनसूरिश्वर जी म. सा के अतिरिक्त आचार्यदेव श्री प्रसन्नदेवसूरिजी म.सा. एवं आचार्यदेव श्री प्रद्युम्नविमलसूरिजी म. सा. आदि मुनि-मण्डल एवं श्रमणी-मण्डल ने निश्रा प्रदान की थी।

हमारा उद्देश्य

आचार्यदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरि एवं उनके पट्टधर आचार्य भगवंतों द्वारा प्रदान दायित्व को अ.भा. श्री सौधर्म बृहत्ततपागच्छीय त्रिस्तुतिक श्रीसंघ निर्वाहित करे के लिए प्रेरित तथा उत्सुक हैं।

01

श्रीसंघ की सेवा

जिनालय, उपाश्रय, श्रीसंघ की प्राचीन धरोहर, वैयावच्च, श्रीसंघ, शोध संस्थान, साहित्य प्रकाशन, ज्ञान भंडार, जैन पाठशाला, गुरुकुल, गौशाला आदि स्थानों पर सेवा प्रदान करना।

02

श्रीसंघ का संगठन

शहरी तथा कस्बों मे बसे त्रिस्तुतिक मतावलंबीयों को संगठित करना तथा पदाधिकारीयों को जिम्मेदारी सौंपकर संगठन मजबूत करना।

03

श्रीसंघ में समन्वय

श्रीसंघ के मुनि भगवंतों, साध्वी भगवंतों, श्रावक एवं श्राविकाओं के मध्य समन्वय बनाना तथा विवाद की स्तिथि में विनयपूर्वक समाधान करना।

विगत कार्यक्रम

लक्ष्मी का सदुपयोग करे - दान करे

दादा गुरुदेव श्री राजेन्द्रसूरि म.सा. द्वारा पुनर्स्थापित त्रिस्तुतिक श्वेताम्बर जैन परंपरा के प्रचार-प्रसार के धार्मिक कार्य मे अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग कर सहयोग प्रदान करे।

Loading
Your booking request was sent. We will call back or send an Email to confirm your reservation. Thank you!