अखिल भारतीय श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय
त्रिस्तुतिक श्रीसंघ
प्रस्तावना
यह संस्था अखिल भारतीय स्तर की है। संस्था सामाजिक, धार्मिक, रचनात्मक एवं स्वगच्छीय कार्यो के उन्नयन तथा समाज हित मे सभी कार्य करेगी जो लिखित है या अलिखित है शामिल है ।
यह संस्था का गठन राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर का है। श्रीसंघ का अखिल भारतीय सौधर्म वृहत तपोगच्छ स्वरुप होगा । देशभर में निवासरत समस्त त्रिस्तुतिक श्रीसंघ, दादा गुरुदेव श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के अनुयायी होगें । वही श्री संघ के होगें ।
जैन दर्शन सिद्धांत मान्यतानुसार जैन इतिहास मे प्राचीनतम त्रिस्तुतिक श्रीसंघ की गणना आदिकाल से चली आ रही है। पूर्व मे जैनाचार्य द्वारा समय पर त्रिस्तुतिक संघ मे क्रियोद्वार एवं शोधन होता आया है। इसी परम्परा मे परम पूज्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहब के द्वारा विक्रम संवत 1925 को पुनः क्रियोद्वार किया गया था । पूर्व मे जैनाचार्यो द्वारा एवं दादागुरुदेव द्वारा अखिल भारतीय सौधर्म वृहत तपागच्छीय त्रिस्तुतिक श्रीसंघ का गठन एवं अध्यक्ष नियुक्ति परम्परागत चली आ रही है। वर्तमान मे अध्यक्ष श्री चम्पालालजी वर्धन के नेतृत्व मे त्रिस्तुतिक श्रीसंघ कार्यरत है |
उद्देश्य
(1) मुख्य रुप से राष्ट्रीय कार्यकारणी अखिल भारतीय त्रिस्तुतिक श्रीसंघ की मुख्य इकाई होगी तथा समाज के संगठन एवं सामाजिक कुरितियों का शमन करने के लिए कार्य करेगी इसके अतिरिक्त समाज में रचनात्मक, जागरुकता का भी कार्य करेगी ।
(2) साथ ही गच्छ के साधु-साध्वी का वैयावच्च की व्यवस्था करेगें तथा साधु-साध्वी के मध्य किसी अप्रिय या विवाद की स्थिति में मध्यस्थता करेगें ।
(3) राष्ट्रीय कार्यकारणी द्वारा लिये गए निर्णय मान्य किये जावेगें और वर्तमान साधु-साध्वी उनके लिए समाचारी लागु करेगें एवं दादा गुरुदेव द्वारा दिये गए नियम की पालना हेतु प्रेरित करेगें ।
(4) त्रिस्तुतिक श्रीसंघ निर्मित मंदिर, उपाश्रय, दादावड़ी आदि का जीर्णोद्धार एवं रख-रखाव के कार्यो की समीक्षा कर आवश्यक कदम उठायेगें ।
(5) देशभर में त्रिस्तुतिक श्रीसंघ के समाजजन के लिए शिक्षा , शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश एवं होस्टल आदि व्यवस्था में सहयोग करेगें तथा समाज स्तर पर को विवाद आापस में रहेगा तो उसका निराकरण राष्ट्रीय स्तर पर किया जावेगा ।
(6) समय पर समाज उत्थान के लिए विशेष प्रयास करेगें ।
(7) समाज के वरिष्ठ सेवाभावी, दानवीर, या राजनैतिक, प्रशासनिक , मिडिया आदि में स्तर पर वरिष्ठजन का राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानीत किया जावेगा । साथ ही मेघावी छात्र-छात्राओं को भी सम्मानित कर उच्च शिक्षा के लिए सविधा मुहैया करायेगें ।
(8) अखिल भारतीय सौधर्म वृहत तपागच्छीय त्रिस्तुतिक श्रीसंघ स्वगच्छीय होकर समस्त त्रिस्तुतिक श्रीसंघ के आराध्य देव दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की पूजा अर्चना, धार्मिक, सामाजिक, रचनात्मक, आयोजन एवं उत्थान के लिए तथा गच्छ के लिए शिक्षा , स्वास्थ्य, वृद, विकलांग असाध्य रोगी आदि के लिए उपयुक्त एवं महती योजना बनाकर उनके उत्थान के लिए सुप्रबंध करना ।
(9) अखिल भारतीय सौधर्म वृहत तपोगच्छीय त्रिस्तुतिक श्रीसंघ उद्देश्य की प्रतिपूर्ति के लिए मुक प्राणी की सेवा, गौशाला की प्रेरणा देना ।
(10) श्रीसंघ का उद्देश्य धार्मिक, पारमार्थिक, रचनात्मक, शिक्षा , स्वास्थ्य, आर्थिक, धर्म आराधना, धर्म शास्त्र की ओर सदस्यों को अभिप्रेरित करना ।
(11) श्रीसंघ को प्राप्त दान, भेट, सहयोग राशि , के प्राप्त राशि का विवरण रखते हुए उत्तम कार्य हेतु श्रीसंघ की स्वीकृति अनुसार धन राशि का व्यय स्वगच्छीय समाजजन के लिए करना ।
(12) श्रीसंघ द्वारा गरीब, निराश्रित, वृहत, विधवा को सहयोग करना। श्रीसंघ के हित में शिक्षा , स्वास्थ्य, शिविर आदि सेवाओं के लिए नियंत्रण कार्य करना। अकाल, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूकम्प, बाढ, सक्रामक बीमारी के समय सेवा एवं सहयोग देना।
(13) श्रीसंघ द्वारा स्वगच्छीय समाजजन के व्यक्ति, विकलांग, अनाथ, वृहत, परित्यगता, असाध्य रोगी एवं आर्थिक सामाजिक, धार्मिक सहयोग करना तथा आजीविका हेतु पुनः स्थापित करना होगा ।
(14) श्रीसंघ द्वारा प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा हेतु मद्द करना ।
(15) श्रीसंघ द्वारा समाज के आर्थिक दृष्टि से कमजोर व्यक्ति को जीवन यापन करने के लिए आर्थिक सहयोग, रोजगार दिलवाने का प्रयास करना ।
(16) श्री संघ द्वारा मंदिर, उपाश्रय, भोजन शाला, स्कूल, गुरुकुल, दादावाड़ी आदि में निर्माण रख रखाव सेवा कार्य प्रदान करना ।
(17) दादा गुरुदेव द्वारा एवं उनके पाट परम्परा में आचार्य भगवन्त द्वारा रचित साहित्य प्रतिष्ठित मंदिर, उपाश्रय, दादावाड़ी आदि के इतिहास को लिपिबद्ध कर जहां भी स्थापित उक्त सभी स्थानों को चिन्हित कर दादा गुरुदेव की जाहोजलाली बढाने के लिए श्रीसंघ सदैव अग्रणी होकर प्रमुख भूमिका निभाते हुए होगें ।