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साहित्य विशारद आचार्यदेवेश

श्रीमद्विजय भूपेन्द्रसुरीश्वर जी म.सा.

  अक्षय तृतीया, वि. सं. 1944 के पावन दिन भोपाल (म.प्र.) में फुलमाली भगवान जी की धर्मपरायणा पत्नी सरस्वती देवी की रत्न कुक्षी से बालक देवीचंद का जन्म हुआ |

  बालक देवीचंद्र ने सात वर्ष की अल्पायु में पूज्यपाद गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेंद्रसूरीश्वर जी म.सा. के करकमलों से अलिराजपुर (म.प्र.) में वैशाख सु. ३,वि.सं.1952 को दीक्षाव्रत ग्रहण किया| गुरुदेवेश द्वारा नाम मिला -मुनि दीपविजय जी ।

  सं. 1973 में विद्वद मंडल ने मंदसौर (म.प्र.) में आप को 'विद्याभूषण ' उपाधि से विभूषित किया ।

  श्रीमद्विजय धनचंद्रसूरीश्वर जी म.सा. के स्वर्गगमन के पश्चात उनके पट्ट पर , ज्येष्ठ सुदी अष्ठमी, वि.सं. 1980 को जावरा (म.प्र.) में, आपको पद से मंडित किया गया | आचार्य पद पर नामकरण हुआ - श्रीमद्विजय भूपेंद्रसूरीश्वर जी म.सा. |

  म.प्र., राजस्थान, गुजरात आदि आपका विचरण क्षेत्र रहा | सं. 1990 के अहमदाबाद मुनि सम्मेलन में उपस्थित रहे तथा आपकी विद्वता से प्रभावित होकर सकल संघ ने नव आचार्यों की प्रवर समिति में आपको स्थान दिया |

  दादा गुरुदेव द्वारा आपको एवं आपके लघु गुरुभ्राता श्री यतीन्द्रविजय जी म.सा. को सौंपे गया श्री अभिधान राजेंद्र कोष के संपादन-संशोधन का कार्य कर्तव्यनिष्ठता से संभाला |

  आप जिनशासन एवं गुरु गच्छ के दिव्य प्रभावक बने | आप श्री द्वारा रचित ग्रंथों में श्री चंद्र राज चरित्र , सूक्त मुक्तावली , दृष्टान्तशतक , संस्कृत टीका आदि प्रसिद्द हुए |

  वि. सं. 1993 के माघ सुदी 7 को 49 वर्ष की अल्पायु में पाटगादी नगरी आहोर (राज.) में गुरुदेव का महाप्रयाण हुआ |