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अध्यात्मयोगी आचार्यदेवेश

श्रीमद्विजय रवींद्रसुरीश्वर जी म.सा.

  वि. सं. 2011 के भाद्रवा सुदी पंचमी को राजेंद्र कोष रचना प्रारंभ स्थली , सियाणा (राज.) में मातुश्री रत्नादेवी की रत्नकुक्षी से बालक नथमल का जन्म हुआ |

  15 वर्ष की अल्पायु में वि. सं. 2026 के वैशाख सुदी 6 को पालीताणा (गुज.) कविरत्न आचार्यदेव श्रीमद्विजय विद्याचंद्रसूरीश्वर जी म.सा. के वरदहस्त से रजोरहण स्वीकार कर , पूज्य के छठवें शिष्य के रूप में अपनी संयम यात्रा प्रारंभ की | नामकरण हुआ - मुनिश्री रवींद्रविजय जी म.सा. |

  सन 1996 में पालीताणा (गुज.) में षष्टम पट्टधर आचार्य देव श्री हेमेंद्र सूरीश्वर जी म.सा. के वरदहस्त से पन्यास -पद प्राप्त करने वाले प्रथम पदवीधर बने |

  मध्यप्रदेश , गुजरात , राजस्थान , महाराष्ट्र , कर्नाटक , आंध्र प्रदेश , उड़ीसा , तमिलनाडु , पश्चिम बंगाल , बिहार , झारखंड आदि प्रान्त आपके विचरण क्षेत्र रहे |

  गुरु गच्छ के इतिहास में सर्वप्रथम आचार्य पद ग्रहण करने के पश्चात् सम्मेत शिखर की यात्रा आप श्री ने ही की |

  भीनमाल 72 जिनालय , श्री राजेंद्र शताब्दी तीर्थ पालीताणा , जावरा चौपाटी , बड़ावदा , नेल्लूर आदि अनेक मंदिरो की अंजनशलाका प्रतिष्ठा आपके कर कमलों से संपन्न हुई |

  मुनिश्री वैराग्ययश विजय जी एवं सा. श्री मुक्ति-नंदिताश्री जी, सा. श्री कीर्ति-रत्ना श्री जी म.सा., सा. श्री कुसुमरत्ना श्री जी म.सा., सा. श्री कीर्तिवर्धना श्री जी म.सा. अनेक श्रमण -श्रमणीवृन्दो की भागवती प्रव्रज्या आपके शुभ हस्त से संपन्न हुई |

  वि. सं. 2069 के वैशाख सुदी 8 को भीनमाल (राज.) में आपश्री को आचार्य पद मिला तथा आप गुरु परम्परा के सप्तम पटधर बने |

  ध्यान , योग , जप आपका प्रिय विषय थे | गुरुदेव श्री को ॐ अर्हं नमः ,ॐ परम गुरुदेवाय नमः की ध्यान ध्वनि के बल से अनेक सिद्धिया लब्धियाँ प्राप्त थी |

  निस्पृहता , निर्लेपता आपका विशिष्ट गुण था | नाम की कामना से सदैव दूर रहने वाले पूज्यश्री अपने एवं विविध समुदाय में सर्व प्रिय थे |

  वि. सं. 2073 अहमदाबाद चातुर्मास हेतु मोहनखेड़ा से विहार करते हुए 2 जुलाई 2016 को दाहोद के निकट में आपका स्वर्गवास हुआ |

  सकलसंघ की इच्छानुसार मोहनखेड़ा तीर्थ में 3 जुलाई 2016 को आपका अग्नि संस्कार हुआ | आप पंचम आचार्य थे जिनका समाधि स्थल मोहनखेड़ा तीर्थ में बन रहा है |